कोल (सूअर) द्वारा क्रांति - (चमत्कार)

एक समय गोस्वामी जी पर्यटन करते हुए अपने दल – बल के साथ मुसलमानों की एक बस्ती बख्तियारपुर पहुचे ! गरमी का समय था ! स्वामीजी की आज्ञा हुई कि स्नान – कीर्तन यही होना चाहीये ! नित्य कर्म से निवृत हो कीर्तन प्रारंभ किये ! ढोलक पर थाप की आबाज सुन मुसलमानों के कान खरे हुए ! युवक मुसलमानों ने आकर रोका ! परन्तु कीर्तन बंद न हुआ ! उन लोगो ने अलबल बकना, धुल उड़ाना आदि उपद्रव प्रारम्भ किया ! स्वामीजी कुछ देर कीर्तन रोक कर समाधिस्थ हुए ! कुछ ही क्षण बाद झुंड के झुंड कोलो (सुअरों) ने गाँव में प्रवेश कर उपद्रव मचाने लगा ! घर – द्वार, भोजन सामग्री आदि नष्ट होने लगे ! ज्यों – ज्यों निवारण की चेष्टा होती, त्यों – त्यों, कोलो की संख्या और उपद्रव बढ़ते जाते ! उपद्रवी युवकों का ध्यान गया तो वे ग्राम रक्षार्थ दौरे ! उपद्रवियों ने अपनी काली करतूत लोगो को सुनाई ! सुनते ही कुछ वयोवृद्ध मुसलमानों ने स्वामीजी से क्षमा प्रार्थना की और कहा —”कुछ उदण्डो ने आपके साथ जो अशिष्टता की है, उसके लिए हमलोग क्षमा प्रार्थी हैं !” स्वामीजी ने कहा —”जब तक कीर्तन पुनः प्रारम्भ नही होगा तब तक इस उपद्रव को कोई रोक नही सकता !” वृद्ध मुसलमानों ने नम्रता पूर्वक कहा ” निर्विरोध आप अपना कीर्तन प्रारम्भ करे !” इधर कीर्तन प्रारम्भ हुआ उधर धीरे – धीरे कोलो का उपद्रव ग्राम में समाप्त होने लगा ! इस प्रकार की क्रांति गो0 तुलसीदास ने दिल्ली बादशाह के यहाँ बंदरों से करबायी थी !

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