राह के मिट्टी से खीर - (चमत्कार)
एक बार दो पहर रात में १५ – २० नागाओं का एक झुंड बनगाँव बाबाजी की कुटी पर पंहुचा ! भंडारी ने उनलोगों का स्वागत किया और पूछा – “आपलोग भोजन बनाएगे या मैं अपने आदमी द्वारा बनवादूँ !” उन्होने कहा — “हमलोग खीर खायेगे, आप अपने आदमी द्वारा बनवा दीजिए !” भंडारी ने कहा — “रात बहुत हो गई हैं ! अभी दूध मिलना कठिन है ! अतः खीर अभी नही बन सकती !” नागाओं ने अपना हठ प्रयोग किया ! उन्होने कहा —”तब हमलोग नही खायेगे, खिलाना हो तो खीर खिलाओ !” भंडारी ने स्वामी जी से सब हाल कह सुनाया ! स्वामी जी ने कहा —” रसोई बनाकर खिला दो !” भंडारी —’वे खाय तब तो ! वे कहते हैं “खीर के सिवा कुछ भी नही खा सकते !” स्वामी जी — ” अच्छा तो टोकना में पानी चढा दो ! जब पानी खौलने लगे तब खबर देना ! सरबा के भाग्य में “मिट्टी ही लिखा है, तो मैं क्या कर सकता हूँ ?” भंडारी ने नौकरों और रसोईया को जगा कर चौका लगवा दिया ! जब पानी खौलने लगा तब स्वामी जी को खबर दी गई ! स्वामी जी ने कहा “रास्ते पर का बालू छान कर उसमें डाल दो ! कुछ देर के बाद उतार देना !” भंडारी ने वैसा ही किया ! रसोईया ने परीक्षा की तो खीर अच्छी बनी थी ! अतिथी को बुलाकर भोजन करबाया गया ! “वे लोग खाते और प्रशंसा करते वाह कैसी खीर बनी है ! खाना खा कर सा सो गए ! रात चैन से कटी ! सबेरा हुआ, सब कोई बाह्यभूमि गए ! जब सब मैदान से निवट चुके और एकत्र हुए तो एक ने अपने अन्तरंग साथी से कहा —”भाई मेरा पेट खराब हो गया हैं ! पैखाना में आज बिल्कुल मिट्टी ही निकली है ! मित्र ने जबाब दिया –’यह बीमारी आज मुझे भी हो गई है !” इस बात को फैलने पर सबों ने स्वीकार किया की आज मल की जगह मिट्टी ही सबों के पैखाने में उतरी है ! सबो ने निष्कर्ष निकाला कि रात में खीर की जगह मिट्टी ही खाई गई हैं ! कुटी पर पहुच कर उनलोगों ने स्वामी जी से पूछा —”बाबा हमलोगों के पैखाने में आज मिट्टी निकला है ! इसका क्या कारण ?” स्वामी जी ने तीब्र स्वर में उत्तर दिया —”तुम लोगो ने रसोई बनाना अस्वीकार किया ! इतनी रात को दूध कहा से आता ? तब कुए के पानी और राह के मिट्टी से काम लेना पड़ा ! अतिथियों को भूखे कैसे रहने देते ?” नागाओं ने पूछा —”बाबा, खाने में तो दूध की खीर से भी अच्छी मालूम पड़ती थी, इसीलिए अधाकर खाए ! कोई खराबी तो नही करेगी ? स्वामी जी ने कहा –”खराबी क्या होगी ? समझ जाओ, दुराग्रह का प्रायश्चित तुम लोगो को करना पड़ा ! ऐसा हठ फिर मत करना ! अगर कोई गृहस्थ होता तो उसे अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए कितनी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती ?” सब ने मिलकर बाबा से छमा याचना की !!
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