अम्बे आब उचित नहीं...

अम्बे आब उचित नहीं देरी !!ध्रुब!!

अम्बे आब जमदुत पहुचि गेल, पाएर परल अछि बेरी !
मित्र बंधु सब टक – टक तकथी, नहीं सहाय एही बेरी !!१!!

योग, यग्य, जप कय नहीं सकलो, परलहू कलक फेरी !
केवल द्वन्द, फंद में फंसी कय, पाप बटोरल ढेरी !!२!!

नाम उचारब दुस्तर भय गेल, कंठ लेल कफ घेरी !
एक उपाय सूझे अछि अम्बे, अहाँ नयन भरी हेरी !!३!!

सुद्ध भजन तुए हे जगदम्बे, देव बजाबथी भेरी !
‘लक्ष्मीपति’ करुनामयी अम्बे, विसरहू चुक धनेरी !!४!!

2 एक टिप्पणी दिअ।:

बेनामी,  6 नवंबर 2024 को 6:54 pm बजे  

मन क प्रसन्न करै बला भजन।

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