उठि भोरे कहु हरी – हरी (प्रातकालीय)

उठि भोरे कहु हरी – हरी !!ध्रुब!!
राम – कृष्ण के कथा मनोहर, सुमिरन कर ले घरी -घरी !!अन्तरा!!

दुर्लभ राम नाम रस मनुआं, पिबले अमृत भरी – भरी !
अंजुली जल जस घटत दिवस -निशि, चला जात जग मरी -मरी !!१!!

मैं – मैं करी ममता, मद भूले, अजा मेष सम चरी – चरी !
सन्मुख प्रबल स्वान नहीं सूझत, आख़िर खैहे घरी – घरी !!२!!

दिवस गमाय पेट के कारण, धन्ध – फन्द – छल करी-करी !
निशि नारी संग सोई गमाये, विषय आगि में पड़ी -पड़ी !!३!!

नाहक जीवन खोई गमाये, चिंता से तन झरी – झरी !
"लक्ष्मीपति” अजहूँ भज रघुवर, यदुवर पद उर घरी – घरी !!४!!

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