योग सिद्धि एवं विशिष्ट चमत्कार..

नेपाल महाराजा के कारागार में स्वामी जी...
प्रथम बार जब स्वामीजी ने पशुपतिनाथ दर्शन हेतु नेपाल की यात्रा की थी तो दुर्भाग्य से या सोभाग्य से दर्शनोप्रांत ब्रिटिंश आक्रम से जो भगदर मची थी उसके कारन स्वामी जी हिन्दू राज्य नेपाल तथा हिन्दू महाराजा के आचार – विचार, राज्य की जनता का रहन – सहन और संस्कृति को नही जान पाते थे ! परन्तु इतना जरुर हुवा कि दुर्भाग्य एवं चिंता योग निष्णात गुरु की प्राप्ति से सोभाग्य एवं शांति में परिणित हो गया ! दूसरी बार स्वामीजी ने दलबल के साथ पुनः नेपाल कि यात्रा की ! उपत्यका के प्रसिद्ध गाँव होते हुए वे कई दिन बाद नेपाल की राजधानी काठमांडू पहुंचे ! जहाँ गए लोगो ने हार्दिक सत्कार किया ! जहाँ जाते लोगों पर अस्वाभाविक असर छा जाता ! थोड़े ही समय में सारे पहाड़ी छेत्रों में उनकी ख्याति फैल गई ! स्वामी जी के आचार – विचार, निर्लोभता’ सादगी तथा प्रेम से हरि कीर्तन आदि सद्दगुणों ने अल्प काल में ही नगर निवासियों को आकषित कर लिया था ! एक दरवारी ने महाराजा से सुनाया कि “भारत से ब्रह्मन कुल के एक साधू आये हैं जिनके साथ कुछ भजनियाँ भी हैं !” महाराजा को साधू के दर्शन की उत्कस्ठा जागी ! उन्होने साधू को दरवार में उपस्थित करने की आज्ञा दी ! दरवारी लोग स्वामीजी से मिले और आदर के साथ दरवार में उपस्थित किया ! महाराजा ने प्रणाम कर कहा –” बाबाजी अपना कुछ चमत्कार दिखाइये !” स्वामीजी ने कहा –”मैं जादूगर नहीं कि जादू दिखाऊ ” महाराजा ने आवेश में आकर कहा –’दिखलाना पड़ेगा, महाराजा का आदेश है !” निर्भीक स्वर में स्वामीजी ने उत्तर दिया —’मैं तो जादू जनता ही नही फिर क्या दिखाऊ ? महाराजा तुम हो तुम ही कुछ अपना करामत दिखलाओ !’ महाराजा गुस्सा में बोले “अच्छा तो मैं ही अपना करामत दिखलाता हूँ !” सिपाहियों को आदेश दिया ” इसे कारागार में बंद करो , मेरी आज्ञा के बिना छूटने न पावे !” स्वामी जी थोरा भी नही घबराए ! ख़ुशी से सिपाही के साथ चल पड़े ! भजनियो को इशारा करते हुए स्वामीजी ने कहा —” रोते क्यों हो ? जहाँ हमलोगों ने आते समय स्नान, भजन और भोजन किया था, वही ठहरना ! मैं जल्द ही आ रहा हूँ ! यह सरवा ( सम्बोधनात्म्क शब्द ) पागल हो गया हैं, पवन को चादर में बांध कर रखना चाहता हैं !” भजनी चले गए ! स्वामीजी कारागार में बंद कर दिए गए एवं कारगर के इर्द – गिर्द शाही पहरा पड़ने लगा ! शाम को कारागार प्रबंधक ने पूछा –” आपको क्या भोजन चाहिये ? स्वामीजी को भोजन तो करना था नही, मजाक में उन्होने कहा –”हाथी का भोजन चाहिये !” प्रबंधक ने भी मजाक में ही बरगद और पीपल की कुछ टहनियाँ भेजबा दी ! इधर भजनी लोग उस स्थान पे पहुचते ही बाबा को आसन लगाए बैठा पाया ! भजनियों के ख़ुशी कि सीमा न रही प्रसन्न होकर पूछा “आप कैसे छूटे और किस रास्ते से आये ! रास्ते में हमलोगों ने आपको तो नही देखा ! फिर हमलोगों से पहले कैसे आये !” स्वामी जीने कहा — “यह सब समझने की क्या आवश्यकता हैं ! स्नान, भजन और भोजन करो !” सबो ने गुरु के आज्ञा की पालन की ! उधर सबेरे कारागार देखा गया तो स्वामीजी गायब थे ! कारागार – प्रबंधक चकित होकर घबराया ! महाराजा को खबर दी गई ! कारागार में ताला लगा था ! खिड़की से झाक कर भीतर देखा गया तो कोठरी लीद से भरा हुआ था ! विस्मित होकर प्रबंधक ने पूछा — “यहाँ लीद कैसे आई ?” बाद में जाकर सारी बातों का प्रतिवेदन महाराजा के पास दिया ! प्रतिवेदन पढ़कर महाराजा की आँखे खुली ! वे बहुत पछताने लगे ! अमूल्य वस्तु प्राप्त होकर भी उन्होने खो डाली ! महाराजा का आदेश हुआ कि साधू को खोजो और सम्मान के साथ दरबार में हाजिर करो !घुरसवार चल पड़े ! ८ – १० मील की दुरी पर भजनियों के साथ स्वामीजी भजन कर रहे थे ! भजन समाप्ति के बाद सरदार ने कहा — “महाराज ! हमारी सरकार को आपको बंदी बनाने का बहुत खेद हैं ! इस राज्य में साधू एवं ब्राह्मणों का बड़ा सम्मान है ! आप साधू और ब्रह्मण दोनो हैं ! ऐसी स्तिथि में आप जैसे महात्मा का अपमान इस राज्य के लिए कलंक का विषय हैं ! मैं राजा की ओर से भेजा गया हूँ कि आपको सादर वहा ले जाकर इस कलंक को मिटाऊँ ! इस हेतु श्रीमान की जो आज्ञा हो, मैं पालन करने के लिए तैयार हूँ ! स्वामी जी ने शांत भाव से उत्तर दिया — ” मैं अब नही जाउगा ! आपके साथ घुड़सवार हैं ही, आज्ञा दीजिए कि घसीट कर ले जाय और कारागार में बंद कर दे !” सरदार ने पाव पकड़ के कहा — ” मनुष्य – मनुष्य ही हैं ! उनसे भूल होना स्वाभाविक हैं ! किन्तु एक बार भूल जब मालूम हो जाती है तो विज्ञ्जन दुहराने की बात ही क्या ? लाज से शव तुल्य हो जाते हैं ! हमारे राजा गाय एवं ब्रह्मण के रक्षक राजपूत है उनसे, फिर ऐसी भूल नही हो सकती !” यह सुनकर स्वामीजी ने कहा — “अब मैं अभी नही लौटुगा ! साधू दो बात नही बोलते ! उनके व्यवहार से मुझे कुछ भी दुःख नही है ! उनसे कुछ लेना – देना भी नही है ! अगर फिर कभी मौका मिला तो देखा जाएगा !” बहुत सम्मान के साथ प्रणाम का सरदार वापस लौट गया ! महाराजा से जाकर सारा वृतांत सुनाया ! हाथ में आये हीरे के खो जाने से जो व्यथा होती हैं, महाराजा वैसा ही महसूस किया ! स्वामी जी दल – बल के साथ स्वदेश लौट आये !!

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