पद सरोज श्री राम चन्द्र के..

भजन
पद सरोज श्री राम चन्द्र के सुमर चतुर चित मेरो !!ध्रुब!!
सुमिरत सफल त्रास मिटी जैहें, पाय पदारथ चारो अन्तरा

जो पद जाय पड़े सुर पुर में , ब्रह्मा धाय पखारो
सो जल शंकर धरे शीष पर , महादेव बरियारो !!१!!

जेहि पद के रज् परसत पाहन, ऋषि पत्नी तन तारो
केवट धोय लियो नावरि में, नरक लोक भयटारो !!२!!

जे पद पल भरी तेजत नाही , उदधि – सुता उर धारो
सो पद शबरी हेरी नयन भरी , तिहुपुर भये उजारो !!३!!

कोटि कोटि पापी पद्पंकज, सुमिरत जन्म निवारो
लक्ष्मीपति’ जै चहत परम पद, तै मति चरण विसारो !!४!!

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गुरु वन्दना...


गुरु वन्दना

प्रथम देव गुरु देव जगत में, और न दूजो देवा
गुरु पूजे सब देवन पूजे, गुरु सेवा सब सेवा !!ध्रुब!!

गुरु ईष्ट गुरु मन्त्र देवता, गुरु सकल उपचारा
गुरु मन्त्र गुरु तंत्र गुरु हैं, गुरु सकल संसार !!१!!

गुरु आवाहन ध्यान गुरु हैं, गुरु पंच विधि पूजा
गुरु पद हव्य कव्य गुरु पावक, सकल वेद गुरु दूजा !!२!!

गुरु होता गुरु याग महायशु, गुरु भागवत ईशा
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु सदाशिव, इन्द्र वरुण दिग्धिषा !!३!!

विनु गुरु जप तप दान व्यर्थ ब्रत, तीरथ फल नहिं दाता
'लक्ष्मीपति’ नहिं सिद्ध गुरु विनु, वृथा जीव जग जाता !!४!!

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