प्रिय मिथिला बंधूगण हम आज आपके बिच उस गाँव – बनगाँव, जिला – सहरसा का चर्चा करना चाहते हैं !
जिस गाँव में बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाई (बाबाजी) को विभुतिपाद” की रश्मि विकसित हुई थी ! जिसे आज भी बाबाजी का गाँव कहा जाता हैं ! जहा आज भी बाबा अपने विराट कुटिया में विराजमान हैं ! बाबाजी कुटी (बनगाँव), सहरसा जिला (मुख्यालय) से ९ की.मी पश्चिम में स्थित हैं ! बाबाजी के महिमा से सिचित इस गाँव में दिन दूना, रात चौगुना प्रगति देखा गया हैं ! एक से बढ़ के एक आईआईटी, आईएएस, आईपीएस, अधिकारी इस गाँव ने मिथिला को प्रदान किया हैं ! दार्शनिक स्थान में जहा इस गाँव का “बाबाजी कुटी” प्रसिद्ध हैं, वही गाँव में विराजमान एक से बढ़ के एक विराट मंदिर सब ग्राम वासियों के श्रद्धा को अपने आप में पिरोये हुवे हैं ! बाबाजी कुटी (बनगाँव) सहरसा, में बाबाजी के विराट मंदिर के साथ – साथ अनेक धर्मस्थल हैं ! जिसमे कुटी पर ठाकुरवाड़ी, श्री कृष्ण मंदिर, महादेव – पार्वती मंदिर, हनुमान मंदिर सामील हैं ! कुटी से थोरा पूरव जाने पर माँ बिष्हरा मंदिर स्थित हैं ! वहा से थोरा उत्तरदिसा में जाने पर माँ भगवती और माँ काली का विराट मंदिर हैं ! वहा से पूरवदिसा में आगे (चौक) पर माँ सरस्वती मंदिर हैं अन्य कई मंदिर इस गाँव में विराजमान हैं ! गाँव- बनगाँव जिला- सहरसा के औजस्क्ल (पहलवानी) युग में परिब्राजक बाबा लक्ष्मीनाथ यहाँ पधारे थे ! उस समय वे सन्यास ग्रहण कर शिखा सूत्र को तिलांजली दे चुके थे ! उनका गठित स्वास्थ्य देखकर क्या युवक क्या वृद्ध सबो ने हर्ष पूर्वक उनका बनगाँव में स्वागत किया था ! स्वागत इसलिए नही की वे महान साधू या योगी थे अपितु उन लोगों का विश्वास था कि अगर इनको अच्छी तरह से खिलाया – पिलाया गया तो एक दिन अच्छे पहलवान निकलेगे ! बाबा बहुत जल्दी ग्रामवासियों के साथ घुल – मिल गए ! चिक्कादरबार (कब्बड्डी), खोरी, चिक्का, छूर – छुर, आदि देहाती खेलो में अच्छे खिलाड़ी समझे जाते थे ! उस समय बनगाँव में दूध – दही का बाहुल्य था ! एक धनी – मनी सज्जन ने उन्हें दूध पीने के लिए एक अच्छी दूध देने वाली गाय दे दी थी ! उस सज्जन का नाम स्वर्गीय श्री कारी खां था ! बाबा के लिए ग्रामीणों ने ठाकुरवाड़ी के प्रांगन में एक पर्ण कुटी बनवा दी थी ! अधिक से अधिक समय वे बनगाँव में ही रहते थे ! इसलिए कि यहाँ के लोग बहुत सीधे – साधे और महात्माओं को बड़ी श्रद्धा की द्रिष्टि से देखते थे ! दिन भर स्वामीजी उनलोगों के साथ रहते और रात में योगाभ्यास किया करते थे ! बनगाँव में ही उनको “विभुतिपाद” की रश्मि विकसित हुई थी ! अनुमानतः १८१९ ई0 से उन्होने ब्रजभाषा और मैथिली में कविता लिखना प्रारंभ किया था ! अधिकतर वे दोहा , चोंपाई और गीत लिखा करते थे ! लोग बाबा के अद्दभूद योग शक्ति का प्रभाव देख कर उन्हें योगी विशेष का अवतार समझने लगे ! बाबा के कुटिया में रोगियों और बन्ध्याओ का ताँता बंधने लगा ! लोग उनके अमोध वाणी से लाभ उठाने लगे ! बाबा यथासाघ्य सबका दुःख दूर किया करते थे ! तब से आज तक बाबा सब ग्रामवासी के ह्रदय में बसे हैं !!
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