आजु देखो जनमे बाले कनहाई..

आजु देखो जनमे बाले कनहाई !!ध्रुव!!
जाके ब्रह्मा पार न पाबै, सो नंदलाल कंहाई !!अंतरा!!

शंकर ध्यान धरत उर अंतर, सपनहु दरस न पाई !
सो यशुदा के पुत्र कहाये, गोपियना गोद खेलाई !!१!!

पल में जो तिहुँपुर उप्जाये, पालना नाश जनाई !
ताके नार छिलत है दगरिना दोउ कर प्राण बचाई !!२!!

नारद शेष शारदा जाके, वेद पुराण सुनाये !
सोहर गावत ताके महरिन, ढ़ोलक ताल बजाये !!३!!

अचरज और कहाँ मैं केते, महरिना दुध पिलाई !
"लक्ष्मीपति" हरि जना के कारण, यदुकुल देह धराई !!४!!

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रे मना मुरख जाग - (प्रातकालीय)

रे मना ! मुरख जाग सवेरे क्यों कायर है सोता है !!ध्रुव!!
राम भजना करि पाइ मनुज तना, क्यों आलस में खोता है !!अंतरा!!

मानुष के तना दुर्लभ जग में, बड़ए भाग से पाता है !
ताको करत खराब नदाना, याही ते दुख पाता है !!१!!

जो भूले इंदिय सुख कारण, सो पीछे पछताता है
चूकेंगे सो भूखे रहि है, आगे यम के नाता है !!२!!

आलस करता ताते पामर, यहाँ वहाँ रोता है !
"लक्ष्मीपति" परचारि कहत है, जगे आनंद है !!३!!

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अपनी बनाई, बनाई बनत नहीं..

अपनी बनाई, बनत नहीं, जाको राम न देत बनाई !!ध्रुव!!

अपने बनावन कारन रावण, सीता लै गई चुराई !
आप मरे, मरि गये सकल कुल, राज विभीषण पाई !!१!!

अपने बनावन कारन कौरव, द्रोपदी चीर छिनाइ !
हारि मरे, पछताइ बंधू मिली, भारत में दुःख पाई !!२!!

अपने बनावन कारन दानव, भस्मासुर बन पाई !
जरि गये माथ, हाथ निज छुबत, महादेव सुख पाई !!३!!

अपने बनावन कारन केते, कोटिन कियो उपाई !
'लक्ष्मीपति’ नहि बने काहू से, झूठे करत बड़ाई !!४!!

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योगी रूप में शिव का आगमन...

आजु देखो एक योगिया आये दाता !!ध्रुब!!

चढ़े बैल पर ओढे बगम्बर, साथ सदा तिहुलोक के माता !
धरे त्रिशूल कर डमरू बजाबत, फिरत रहे नहि काहु से नाता !!१!!

सिर गंगा दुतिया के निशिकर, भूति लगाय नख सिख भरि गाता !
शुद्ध शरीर शोभा अति सुन्दर, बम बम बम बोलत हँसी बाता !!२!!

भांग धथुर फल आक भोजन करि, संत को देत जिलेबी भाता !
भूमि गाय गजसोन लुटावत, सो योगिया भीख माँगी के खाता !!३!!

महादेव जग नाम कहाये, ब्रह्मादिक देवन के आता !
"लक्ष्मीपति” शरणागत आये, कृपा दृष्टि करि हेरिय त्राता !!४!!

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उठि भोरे कहु हरी – हरी (प्रातकालीय)

उठि भोरे कहु हरी – हरी !!ध्रुब!!
राम – कृष्ण के कथा मनोहर, सुमिरन कर ले घरी -घरी !!अन्तरा!!

दुर्लभ राम नाम रस मनुआं, पिबले अमृत भरी – भरी !
अंजुली जल जस घटत दिवस -निशि, चला जात जग मरी -मरी !!१!!

मैं – मैं करी ममता, मद भूले, अजा मेष सम चरी – चरी !
सन्मुख प्रबल स्वान नहीं सूझत, आख़िर खैहे घरी – घरी !!२!!

दिवस गमाय पेट के कारण, धन्ध – फन्द – छल करी-करी !
निशि नारी संग सोई गमाये, विषय आगि में पड़ी -पड़ी !!३!!

नाहक जीवन खोई गमाये, चिंता से तन झरी – झरी !
"लक्ष्मीपति” अजहूँ भज रघुवर, यदुवर पद उर घरी – घरी !!४!!

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अम्बे आब उचित नहीं...

अम्बे आब उचित नहीं देरी !!ध्रुब!!

अम्बे आब जमदुत पहुचि गेल, पाएर परल अछि बेरी !
मित्र बंधु सब टक – टक तकथी, नहीं सहाय एही बेरी !!१!!

योग, यग्य, जप कय नहीं सकलो, परलहू कलक फेरी !
केवल द्वन्द, फंद में फंसी कय, पाप बटोरल ढेरी !!२!!

नाम उचारब दुस्तर भय गेल, कंठ लेल कफ घेरी !
एक उपाय सूझे अछि अम्बे, अहाँ नयन भरी हेरी !!३!!

सुद्ध भजन तुए हे जगदम्बे, देव बजाबथी भेरी !
‘लक्ष्मीपति’ करुनामयी अम्बे, विसरहू चुक धनेरी !!४!!

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कन्हैया क बालपन..

कहन लगे मोहन मैया मैया !!ध्रुब!!

हुलसी हुलसी यशुदा जी पुछति, बिहुँसी बिहुँसी मूसुकैया!!अन्तरा!!

नन्द महर को बबा बबा अरु, बलदाऊ को भैया!
कबहूँ कबहूँ दादा दादा कहि टेरत, कबहूँ कबहूँ तुतरैया!!१!!

बछरण देखि लटुकी गहि धावत, हिया हिया कही हिया!
धरि धरि कर महरिन सिखलावत, गोपियन कोऊ छिया!!२!!

रहि रहि करि खोलत मुख पंकज, दतुली दुई दरसैंया!
कमल नयन सिर मलित लटुरिया, गोपियन लखि ललचैया!!३!!

निरखि निरखि शिशुपन की शोभा, सुर नागरि पछतैया!
तोतरी बचन अकनि निशिवासर, लक्ष्मीपति मुख पैया!!४ !!

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योग सिद्धि एवं विशिष्ट चमत्कार..

नेपाल महाराजा के कारागार में स्वामी जी...
प्रथम बार जब स्वामीजी ने पशुपतिनाथ दर्शन हेतु नेपाल की यात्रा की थी तो दुर्भाग्य से या सोभाग्य से दर्शनोप्रांत ब्रिटिंश आक्रम से जो भगदर मची थी उसके कारन स्वामी जी हिन्दू राज्य नेपाल तथा हिन्दू महाराजा के आचार – विचार, राज्य की जनता का रहन – सहन और संस्कृति को नही जान पाते थे ! परन्तु इतना जरुर हुवा कि दुर्भाग्य एवं चिंता योग निष्णात गुरु की प्राप्ति से सोभाग्य एवं शांति में परिणित हो गया ! दूसरी बार स्वामीजी ने दलबल के साथ पुनः नेपाल कि यात्रा की ! उपत्यका के प्रसिद्ध गाँव होते हुए वे कई दिन बाद नेपाल की राजधानी काठमांडू पहुंचे ! जहाँ गए लोगो ने हार्दिक सत्कार किया ! जहाँ जाते लोगों पर अस्वाभाविक असर छा जाता ! थोड़े ही समय में सारे पहाड़ी छेत्रों में उनकी ख्याति फैल गई ! स्वामी जी के आचार – विचार, निर्लोभता’ सादगी तथा प्रेम से हरि कीर्तन आदि सद्दगुणों ने अल्प काल में ही नगर निवासियों को आकषित कर लिया था ! एक दरवारी ने महाराजा से सुनाया कि “भारत से ब्रह्मन कुल के एक साधू आये हैं जिनके साथ कुछ भजनियाँ भी हैं !” महाराजा को साधू के दर्शन की उत्कस्ठा जागी ! उन्होने साधू को दरवार में उपस्थित करने की आज्ञा दी ! दरवारी लोग स्वामीजी से मिले और आदर के साथ दरवार में उपस्थित किया ! महाराजा ने प्रणाम कर कहा –” बाबाजी अपना कुछ चमत्कार दिखाइये !” स्वामीजी ने कहा –”मैं जादूगर नहीं कि जादू दिखाऊ ” महाराजा ने आवेश में आकर कहा –’दिखलाना पड़ेगा, महाराजा का आदेश है !” निर्भीक स्वर में स्वामीजी ने उत्तर दिया —’मैं तो जादू जनता ही नही फिर क्या दिखाऊ ? महाराजा तुम हो तुम ही कुछ अपना करामत दिखलाओ !’ महाराजा गुस्सा में बोले “अच्छा तो मैं ही अपना करामत दिखलाता हूँ !” सिपाहियों को आदेश दिया ” इसे कारागार में बंद करो , मेरी आज्ञा के बिना छूटने न पावे !” स्वामी जी थोरा भी नही घबराए ! ख़ुशी से सिपाही के साथ चल पड़े ! भजनियो को इशारा करते हुए स्वामीजी ने कहा —” रोते क्यों हो ? जहाँ हमलोगों ने आते समय स्नान, भजन और भोजन किया था, वही ठहरना ! मैं जल्द ही आ रहा हूँ ! यह सरवा ( सम्बोधनात्म्क शब्द ) पागल हो गया हैं, पवन को चादर में बांध कर रखना चाहता हैं !” भजनी चले गए ! स्वामीजी कारागार में बंद कर दिए गए एवं कारगर के इर्द – गिर्द शाही पहरा पड़ने लगा ! शाम को कारागार प्रबंधक ने पूछा –” आपको क्या भोजन चाहिये ? स्वामीजी को भोजन तो करना था नही, मजाक में उन्होने कहा –”हाथी का भोजन चाहिये !” प्रबंधक ने भी मजाक में ही बरगद और पीपल की कुछ टहनियाँ भेजबा दी ! इधर भजनी लोग उस स्थान पे पहुचते ही बाबा को आसन लगाए बैठा पाया ! भजनियों के ख़ुशी कि सीमा न रही प्रसन्न होकर पूछा “आप कैसे छूटे और किस रास्ते से आये ! रास्ते में हमलोगों ने आपको तो नही देखा ! फिर हमलोगों से पहले कैसे आये !” स्वामी जीने कहा — “यह सब समझने की क्या आवश्यकता हैं ! स्नान, भजन और भोजन करो !” सबो ने गुरु के आज्ञा की पालन की ! उधर सबेरे कारागार देखा गया तो स्वामीजी गायब थे ! कारागार – प्रबंधक चकित होकर घबराया ! महाराजा को खबर दी गई ! कारागार में ताला लगा था ! खिड़की से झाक कर भीतर देखा गया तो कोठरी लीद से भरा हुआ था ! विस्मित होकर प्रबंधक ने पूछा — “यहाँ लीद कैसे आई ?” बाद में जाकर सारी बातों का प्रतिवेदन महाराजा के पास दिया ! प्रतिवेदन पढ़कर महाराजा की आँखे खुली ! वे बहुत पछताने लगे ! अमूल्य वस्तु प्राप्त होकर भी उन्होने खो डाली ! महाराजा का आदेश हुआ कि साधू को खोजो और सम्मान के साथ दरबार में हाजिर करो !घुरसवार चल पड़े ! ८ – १० मील की दुरी पर भजनियों के साथ स्वामीजी भजन कर रहे थे ! भजन समाप्ति के बाद सरदार ने कहा — “महाराज ! हमारी सरकार को आपको बंदी बनाने का बहुत खेद हैं ! इस राज्य में साधू एवं ब्राह्मणों का बड़ा सम्मान है ! आप साधू और ब्रह्मण दोनो हैं ! ऐसी स्तिथि में आप जैसे महात्मा का अपमान इस राज्य के लिए कलंक का विषय हैं ! मैं राजा की ओर से भेजा गया हूँ कि आपको सादर वहा ले जाकर इस कलंक को मिटाऊँ ! इस हेतु श्रीमान की जो आज्ञा हो, मैं पालन करने के लिए तैयार हूँ ! स्वामी जी ने शांत भाव से उत्तर दिया — ” मैं अब नही जाउगा ! आपके साथ घुड़सवार हैं ही, आज्ञा दीजिए कि घसीट कर ले जाय और कारागार में बंद कर दे !” सरदार ने पाव पकड़ के कहा — ” मनुष्य – मनुष्य ही हैं ! उनसे भूल होना स्वाभाविक हैं ! किन्तु एक बार भूल जब मालूम हो जाती है तो विज्ञ्जन दुहराने की बात ही क्या ? लाज से शव तुल्य हो जाते हैं ! हमारे राजा गाय एवं ब्रह्मण के रक्षक राजपूत है उनसे, फिर ऐसी भूल नही हो सकती !” यह सुनकर स्वामीजी ने कहा — “अब मैं अभी नही लौटुगा ! साधू दो बात नही बोलते ! उनके व्यवहार से मुझे कुछ भी दुःख नही है ! उनसे कुछ लेना – देना भी नही है ! अगर फिर कभी मौका मिला तो देखा जाएगा !” बहुत सम्मान के साथ प्रणाम का सरदार वापस लौट गया ! महाराजा से जाकर सारा वृतांत सुनाया ! हाथ में आये हीरे के खो जाने से जो व्यथा होती हैं, महाराजा वैसा ही महसूस किया ! स्वामी जी दल – बल के साथ स्वदेश लौट आये !!

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राह के मिट्टी से खीर - (चमत्कार)

एक बार दो पहर रात में १५ – २० नागाओं का एक झुंड बनगाँव बाबाजी की कुटी पर पंहुचा ! भंडारी ने उनलोगों का स्वागत किया और पूछा – “आपलोग भोजन बनाएगे या मैं अपने आदमी द्वारा बनवादूँ !” उन्होने कहा — “हमलोग खीर खायेगे, आप अपने आदमी द्वारा बनवा दीजिए !” भंडारी ने कहा — “रात बहुत हो गई हैं ! अभी दूध मिलना कठिन है ! अतः खीर अभी नही बन सकती !” नागाओं ने अपना हठ प्रयोग किया ! उन्होने कहा —”तब हमलोग नही खायेगे, खिलाना हो तो खीर खिलाओ !” भंडारी ने स्वामी जी से सब हाल कह सुनाया ! स्वामी जी ने कहा —” रसोई बनाकर खिला दो !” भंडारी —’वे खाय तब तो ! वे कहते हैं “खीर के सिवा कुछ भी नही खा सकते !” स्वामी जी — ” अच्छा तो टोकना में पानी चढा दो ! जब पानी खौलने लगे तब खबर देना ! सरबा के भाग्य में “मिट्टी ही लिखा है, तो मैं क्या कर सकता हूँ ?” भंडारी ने नौकरों और रसोईया को जगा कर चौका लगवा दिया ! जब पानी खौलने लगा तब स्वामी जी को खबर दी गई ! स्वामी जी ने कहा “रास्ते पर का बालू छान कर उसमें डाल दो ! कुछ देर के बाद उतार देना !” भंडारी ने वैसा ही किया ! रसोईया ने परीक्षा की तो खीर अच्छी बनी थी ! अतिथी को बुलाकर भोजन करबाया गया ! “वे लोग खाते और प्रशंसा करते वाह कैसी खीर बनी है ! खाना खा कर सा सो गए ! रात चैन से कटी ! सबेरा हुआ, सब कोई बाह्यभूमि गए ! जब सब मैदान से निवट चुके और एकत्र हुए तो एक ने अपने अन्तरंग साथी से कहा —”भाई मेरा पेट खराब हो गया हैं ! पैखाना में आज बिल्कुल मिट्टी ही निकली है ! मित्र ने जबाब दिया –’यह बीमारी आज मुझे भी हो गई है !” इस बात को फैलने पर सबों ने स्वीकार किया की आज मल की जगह मिट्टी ही सबों के पैखाने में उतरी है ! सबो ने निष्कर्ष निकाला कि रात में खीर की जगह मिट्टी ही खाई गई हैं ! कुटी पर पहुच कर उनलोगों ने स्वामी जी से पूछा —”बाबा हमलोगों के पैखाने में आज मिट्टी निकला है ! इसका क्या कारण ?” स्वामी जी ने तीब्र स्वर में उत्तर दिया —”तुम लोगो ने रसोई बनाना अस्वीकार किया ! इतनी रात को दूध कहा से आता ? तब कुए के पानी और राह के मिट्टी से काम लेना पड़ा ! अतिथियों को भूखे कैसे रहने देते ?” नागाओं ने पूछा —”बाबा, खाने में तो दूध की खीर से भी अच्छी मालूम पड़ती थी, इसीलिए अधाकर खाए ! कोई खराबी तो नही करेगी ? स्वामी जी ने कहा –”खराबी क्या होगी ? समझ जाओ, दुराग्रह का प्रायश्चित तुम लोगो को करना पड़ा ! ऐसा हठ फिर मत करना ! अगर कोई गृहस्थ होता तो उसे अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए कितनी कठिनाइयाँ झेलनी पड़ती ?” सब ने मिलकर बाबा से छमा याचना की !!

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कोल (सूअर) द्वारा क्रांति - (चमत्कार)

एक समय गोस्वामी जी पर्यटन करते हुए अपने दल – बल के साथ मुसलमानों की एक बस्ती बख्तियारपुर पहुचे ! गरमी का समय था ! स्वामीजी की आज्ञा हुई कि स्नान – कीर्तन यही होना चाहीये ! नित्य कर्म से निवृत हो कीर्तन प्रारंभ किये ! ढोलक पर थाप की आबाज सुन मुसलमानों के कान खरे हुए ! युवक मुसलमानों ने आकर रोका ! परन्तु कीर्तन बंद न हुआ ! उन लोगो ने अलबल बकना, धुल उड़ाना आदि उपद्रव प्रारम्भ किया ! स्वामीजी कुछ देर कीर्तन रोक कर समाधिस्थ हुए ! कुछ ही क्षण बाद झुंड के झुंड कोलो (सुअरों) ने गाँव में प्रवेश कर उपद्रव मचाने लगा ! घर – द्वार, भोजन सामग्री आदि नष्ट होने लगे ! ज्यों – ज्यों निवारण की चेष्टा होती, त्यों – त्यों, कोलो की संख्या और उपद्रव बढ़ते जाते ! उपद्रवी युवकों का ध्यान गया तो वे ग्राम रक्षार्थ दौरे ! उपद्रवियों ने अपनी काली करतूत लोगो को सुनाई ! सुनते ही कुछ वयोवृद्ध मुसलमानों ने स्वामीजी से क्षमा प्रार्थना की और कहा —”कुछ उदण्डो ने आपके साथ जो अशिष्टता की है, उसके लिए हमलोग क्षमा प्रार्थी हैं !” स्वामीजी ने कहा —”जब तक कीर्तन पुनः प्रारम्भ नही होगा तब तक इस उपद्रव को कोई रोक नही सकता !” वृद्ध मुसलमानों ने नम्रता पूर्वक कहा ” निर्विरोध आप अपना कीर्तन प्रारम्भ करे !” इधर कीर्तन प्रारम्भ हुआ उधर धीरे – धीरे कोलो का उपद्रव ग्राम में समाप्त होने लगा ! इस प्रकार की क्रांति गो0 तुलसीदास ने दिल्ली बादशाह के यहाँ बंदरों से करबायी थी !

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मृत गाय का पुनर जन्म - (चमत्कार)


बनगाँव के श्री कारी खां ने स्वामीजी को दूध पीने के लिए एक गाय दी थी ! नित्य प्रति इस गाय का दूध बाबाजी को भेज दिया करते थे ! एक दिन दूध नहीं पहुंचा ! बाबाजी ने निशचित समय का अतिक्रमण देख प्राप्त वस्तुओ से अपनी वृभुक्षा मिटा ली ! गाय को सर्प ने काट लिया था ! उपचार किया गया किन्तु विफल रहा ! अन्ततोगत्वा गाय मर गई ! श्री कारी खां ने आकर बाबाजी से सारी वृतांत कह सुनाया ! बाबाजी ने चोंक कर कहा —”क्या गाय सर्प के काटने से मर गई ?” श्री कारी खां ने कहा — हाँ ! बाबाजी ने उदास होकर पूछा —”क्या चमार गाय को उठा ले गया !” श्री कारी खां ने कहा “निशचित कहा नहीं जा सकता !” बाबाजी बोले —” शीघ्रता से जाओ और गाय को ले जाने से रोको ! मैं अतिशीघ्र आता हूँ !” बाबाजी पाँव में खराऊ और हाथ में लाठी लेकर पहुच गए ! कुछ काल खड़े देखते रहे और बाद में अपनी छड़ी से उठाने का उपक्रम किये ! छड़ी के स्पर्श ही से गाय उठ गई ! उपस्थित लोग बाबाजी की अद्भुद शक्ति देख कर चकित रह गए ! बाबाजी ने कारी खां से कहा —”कुछ देर तक खाने नहीं देना ! पहले दूध को स्तन से निचोर कर फेक देना, कोई पीने न पावे ! सब ठीक हो जायेगा !” यह कहके बाबाजी कुटी पर चले गए ! इस तरह से मृत गाय का पुनर जन्म हुआ !!

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जगन्नाथ जी का पट बंद - (चमत्कार)

एक बार स्वामी जी पर्यटन करते हुए अपने दल – बल के साथ जगन्नाथ पूरी पहुचे ! नित्य कर्म से निवृत हो भजनी के साथ प्रातः काल कीर्तन करने जगन्नाथ जी के मंदिर पहुचे ! ज्यों ही ढोलक पर थाप पड़ी, त्यों ही पंडे लोग रोकने के लिए जुट गए ! उन्होने स्वामीजी से कहा __”यहाँ ढोल ढाक बजने का नियम नहीं है ! इसे बंद कीजिए !” स्वामीजी बहुत समझाए, पर पडे लोग अपनी डफली बजाते ही रहे ! अंत में स्वामीजी मंदिर छोड़कर दलबल के साथ दूसरी जगह चले गए ! स्वामीजी के जाते ही जगन्नाथ जी का पट स्वयं बंद हो गया ! अब पंडे लोगों में तहलका मची ! पट खोलने का सारा प्रयास विफल रहा ! सबो ने निश्चय किया की बाबा जी को हटाने का यह दुष्परिनाम है ! सब मिलकर स्वामीजी के पास पहुचें ! बाबा कीर्तन में मग्न थे ! सरदार पंडा उनके सामने हाथ जोड़ कर खरे थे ! स्वामीजी की नज़र तो उनपर पड़ी किन्तु भजन समाप्त नहीं हुवा था इसलिए कुछ नहीं पूछ सके ! भजन समाप्त होने पर स्वामीजी ने पूछा __ “क्यों खड़े हो ? क्या चाहिये ?” पंडे ने कहा __’आपके आने के बाद ही जगन्नाथ जी का पट आप से आप बंद हो गया ! भोग – राग सब बंद हैं ! आप वही चल कर कीर्तन करे ! हमलोग आपको पहचान नहीं पाये ! इसलिए ऐसी भूल हो गई ! आप क्षमा करे ! भोग राग का बंद होना सुनकर स्वामीजी तुरंत भजनियो को वही चलने का आदेश दिया ! मंदिर में कीर्तन प्रारम्भ होते ही पट स्वयं खुल गया ! साथ ही सबों के हृदय कमल भी खिल गये !

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मल्लो की परीक्षा - (चमत्कार)

जिला - सहरसा के बनगाँव गाँव में बाबाजी के रहने का कारण केवल मल्ल (कुश्ती) ही नहीं था ! बल्कि वहाँ के सीधे सादे लोगों का इनके प्रति असीम श्रद्धा एवं आदर था ! स्वामी जी के प्राथमिक व्यायाम कबड्डी, खोरिचिका, दंडबैठक इत्यादी अब अब्र आसन, प्राणायाम एवं योगाभ्यास में बदल चूका था ! एकबार जब अखाड़े में अच्छे मल्ल (पहलवान) कुश्ती के लिए जुटे थे, तो स्वामीजी भी वहाँ पहुचें ! उन्होने कहा _”आज मैं तुमलोगों की परीक्षा लूँगा !” सबो ने हर्षित हो स्वीकार किया ! स्वामी जी समाधिस्थ हो बैठ गए और बोले_ “मुझे पृथ्वी पर से जो उठाएगा वह इनाम में मिठाई पायेगा ! ” उन्हें उठाने का होड़ लगी ! मल्ल बंधुओ का ख्याल था की जो पहले उठाएगा वही मिठाई का अधिकारी होगा ! यह समझ स्वामीजी ने कहा _”आगे पीछे जो उठाएगा सबको मिठाई मिलेगी !” एक – एक कर सबों ने प्रयत्न किया ! पर स्वामीजी टस से मस नहीं हुवे ! सभी बहुत लज्जित हुवा ! आज्ञा हुई की “अब सभी मिलकर उठाओ और मिठाई सब मिलके खाओ !” परन्तु सबों के संयुक्त प्रयास होने पर भी बाबा हिमालय की तरह स्थिर रहे ! स्वामी जी ने फिर एक अति दुर्बल व्यक्ति को बुलाया और उठाने कहा ! उसके हाथ लगाते ही बाबा पृथ्वी से उपर उठ गए ! सबो ने हल्ला किया _” बाबा ने जादू किया,बाबा ने जादू किया !” पर उन्हें क्या मालूम की बाबा गरिमा और लाघिमा योग का प्रयोग किये थे ! बाबा के आज्ञानुसार सबों ने मिलकर मिठाई खा ली!

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दो शब्द - जितमोहन झा



परिचय: नाम जितमोहन झा घरक नाम “जितू”
जन्मतिथि ०२/०३/१९८५ भेल,
श्री बैद्यनाथ झा आ श्रीमति शांति देवी केँ सभ स छोट (द्वितीय) सुपूत्र।
स्व.रामेश्वर झा पितामह आ स्व.शोभाकांत झा मातृमह।
गाम-बनगाँव, सहरसा जिला।
रुचि : अध्ययन आ लेखन खास कs मैथिली ।


हमर (व्यवस्थापकक) उदेश्य अपन रचनाक माध्यम सs बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाई के चर्चा समस्त मिथिलावासी बिच करबाक अछि ! ब्लॉग पर प्रस्तुत सभ आलेख आर भजन बाबा लक्ष्मीनाथ द्वारा रचित आर ‘परमहंस लक्ष्मीनाथ गोस्वामी समिति’ जमशेदपुर, द्वारा १९६९ ई0 मs प्रकाशित पुस्तक “गीतावली” सs लेल गेल अछि !

हम जानेत छलो हमर मिथिला बंधूगण कहता की हम बाबाक चर्चा मैथिली भाषा मs किये न केलो ? एकर पाछा सब से पैघ बात इ अछि की बाबा के भक्त खाली मिथले वासी नै हर प्रान्त के हर भाषी लोग रहैथ तहि हेतु हुनकर चर्चा हम हिन्दी मs करब उच्चित समझलो तहि हेतु हम छमा चाहब ! संगे हुनकर चर्चा करैत यदि हमरा सs कुनू त्रुटी हुवे तs छमा करैत मार्गदर्शन करब,

अपने लोकेन सs हमर अनुरोध यदि अपने इ ब्लॉग पर किछ लिखे चाही तs हमरा से संपर्क करी !

हमर ईमेल अछि ..
jitmohan_jha@yahoo.com

!! धन्यवाद !!

प्रेम स कहू जय मैथिली,जय मिथिला,जय बाबा लक्ष्मीनाथ!

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बाबाजी कुटी (बनगाँव) सहरसा...

प्रिय मिथिला बंधूगण हम आज आपके बिच उस गाँव – बनगाँव, जिला – सहरसा का चर्चा करना चाहते हैं !

जिस गाँव में बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाई (बाबाजी) को विभुतिपाद” की रश्मि विकसित हुई थी ! जिसे आज भी बाबाजी का गाँव कहा जाता हैं ! जहा आज भी बाबा अपने विराट कुटिया में विराजमान हैं ! बाबाजी कुटी (बनगाँव), सहरसा जिला (मुख्यालय) से ९ की.मी पश्चिम में स्थित हैं ! बाबाजी के महिमा से सिचित इस गाँव में दिन दूना, रात चौगुना प्रगति देखा गया हैं ! एक से बढ़ के एक आईआईटी, आईएएस, आईपीएस, अधिकारी इस गाँव ने मिथिला को प्रदान किया हैं ! दार्शनिक स्थान में जहा इस गाँव का “बाबाजी कुटी” प्रसिद्ध हैं, वही गाँव में विराजमान एक से बढ़ के एक विराट मंदिर सब ग्राम वासियों के श्रद्धा को अपने आप में पिरोये हुवे हैं ! बाबाजी कुटी (बनगाँव) सहरसा, में बाबाजी के विराट मंदिर के साथ – साथ अनेक धर्मस्थल हैं ! जिसमे कुटी पर ठाकुरवाड़ी, श्री कृष्ण मंदिर, महादेव – पार्वती मंदिर, हनुमान मंदिर सामील हैं ! कुटी से थोरा पूरव जाने पर माँ बिष्हरा मंदिर स्थित हैं ! वहा से थोरा उत्तरदिसा में जाने पर माँ भगवती और माँ काली का विराट मंदिर हैं ! वहा से पूरवदिसा में आगे (चौक) पर माँ सरस्वती मंदिर हैं अन्य कई मंदिर इस गाँव में विराजमान हैं ! गाँव- बनगाँव जिला- सहरसा के औजस्क्ल (पहलवानी) युग में परिब्राजक बाबा लक्ष्मीनाथ यहाँ पधारे थे ! उस समय वे सन्यास ग्रहण कर शिखा सूत्र को तिलांजली दे चुके थे ! उनका गठित स्वास्थ्य देखकर क्या युवक क्या वृद्ध सबो ने हर्ष पूर्वक उनका बनगाँव में स्वागत किया था ! स्वागत इसलिए नही की वे महान साधू या योगी थे अपितु उन लोगों का विश्वास था कि अगर इनको अच्छी तरह से खिलाया – पिलाया गया तो एक दिन अच्छे पहलवान निकलेगे ! बाबा बहुत जल्दी ग्रामवासियों के साथ घुल – मिल गए ! चिक्कादरबार (कब्बड्डी), खोरी, चिक्का, छूर – छुर, आदि देहाती खेलो में अच्छे खिलाड़ी समझे जाते थे ! उस समय बनगाँव में दूध – दही का बाहुल्य था ! एक धनी – मनी सज्जन ने उन्हें दूध पीने के लिए एक अच्छी दूध देने वाली गाय दे दी थी ! उस सज्जन का नाम स्वर्गीय श्री कारी खां था ! बाबा के लिए ग्रामीणों ने ठाकुरवाड़ी के प्रांगन में एक पर्ण कुटी बनवा दी थी ! अधिक से अधिक समय वे बनगाँव में ही रहते थे ! इसलिए कि यहाँ के लोग बहुत सीधे – साधे और महात्माओं को बड़ी श्रद्धा की द्रिष्टि से देखते थे ! दिन भर स्वामीजी उनलोगों के साथ रहते और रात में योगाभ्यास किया करते थे ! बनगाँव में ही उनको “विभुतिपाद” की रश्मि विकसित हुई थी ! अनुमानतः १८१९ ई0 से उन्होने ब्रजभाषा और मैथिली में कविता लिखना प्रारंभ किया था ! अधिकतर वे दोहा , चोंपाई और गीत लिखा करते थे ! लोग बाबा के अद्दभूद योग शक्ति का प्रभाव देख कर उन्हें योगी विशेष का अवतार समझने लगे ! बाबा के कुटिया में रोगियों और बन्ध्याओ का ताँता बंधने लगा ! लोग उनके अमोध वाणी से लाभ उठाने लगे ! बाबा यथासाघ्य सबका दुःख दूर किया करते थे ! तब से आज तक बाबा सब ग्रामवासी के ह्रदय में बसे हैं !!

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